हिसार : कपास में ‘एकीकृत खेती प्रबंधन’ हेतु चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय व कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा तीन दिवसीय राज्य स्तरीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया। हकृवि के मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय के सभागार में आयोजित प्रशिक्षण में प्रदेश के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने भाग लिया। प्रशिक्षण के समापन अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज मुख्य अतिथि रहे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता , संयुक्त कृषि निदेशक (कपास) डॉ. राम प्रकाश सिहाग ने की।

कुलपति प्रो. काम्बोज ने अधिकारियों से प्रदेश में कपास के क्षेत्र एवं उत्पादन बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि लक्ष्य हमेशा बड़ा होना चाहिए। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अधिकारियों को और अधिक बेहतर ढंग से कार्य करना होगा। उन्होंने कपास की अधिक पैदावार लेने के लिए उन्नत किस्म के बीजों का चयन, उचित समय पर बुवाई, खरपतवारों पर नियंत्रण, निर्धारित मात्रा में खाद और पानी का प्रयोग व कीटों और रोगों से बचाव के लिए समय पर उपाय करने की हिदायत दी। उन्होंने कपास की फसल के लिए किसानों को जागरूक करने हेतु ब्लाक स्तर पर प्रदर्शन प्लांट लगाने के भी निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को फिल्ड वर्क के प्रति पूरी सजगता के साथ कार्य करना होगा ताकि किसानों को समय पर फसल संबंधी तकनीकी जानकारी मिलती रहे। उन्होंने कहा कि उन्नत कृषि तकनीक अपनाकर कपास की बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। कुलपति ने सभी प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाण-पत्र भी वितरित किए।
डॉ. राम प्रकाश सिहाग ने बताया कि कपास हरियाणा प्रदेश की एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है। यह प्रशिक्षण हरियाणा सरकार के कृषक हितैषी दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके तहत राज्य के कपास उत्पादक किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ उनकी आय में बढ़ोतरी करने में मदद मिलेगी। उन्होंने किसानों को कीटों से बचाव के लिए कम लागत वाली तकनीकों को अपनाने की सलाह दी। नवीनतम तकनीक से किसान कम संसाधनों में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
अधिकारियों को प्रशिक्षण में दी तकनीकी जानकारी
अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि प्रशिक्षण में गुलाबी सुंडी एवं सफेद मक्खी के प्रभावी प्रबंधन पर जोर दिया गया। उन्होंने बताया कि गुलाबी सुंडी नरमा की लकडिय़ों के ढेर और अधखुले टिंडों में निवास करती है, इसलिए इन लकडिय़ों को झाडक़र एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखें और टिंडों को नष्ट कर दें। इसके अलावा, उखेड़ा रोग, रूट रॉट, पैरा विल्ट, जड़ गलन रोग, मरोडिय़ा रोग और टिंडा गलन रोग के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि बुआई के लिए सही समय, उपयुक्त बीज का चयन और विश्वविद्यालय की सिफारिश के अनुसार प्रमाणित बीज का उपयोग करना आवश्यक है। केवल बीटी-2 को अपनाएं और बीटी-3 या बीटी-4 के प्रलोभन में न आएं। पौधों के पोषण पर विशेष ध्यान दें तथा विश्वविद्यालय द्वारा निर्देशित उर्वरकों और उनकी अनुशंसित मात्रा का पालन करें। पोषक तत्वों की कमी के लक्षण दिखने पर समय पर और सटीक नियंत्रण करें। प्रशिक्षण के दौरान जैविक, यांत्रिक एवं रासायनिक कीट प्रबंधन तकनीकों पर विस्तृत चर्चा की गई, साथ ही फसल पोषण प्रबंधन एवं सस्य प्रक्रियाओं की अहमियत को भी बताया गया।
मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डॉ. रमेश यादव ने सभी का स्वागत किया। मंच का संचालन डॉ. शुभम लाम्बा ने जबकि धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. अरुण यादव ने किया। प्रशिक्षण के दौरान कृषि विभाग के अधिकारियों को हकृवि कपास अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. कर्मल सिंह मलिक, डॉ. सोमवीर, डॉ. अनिल कुमार सैनी, डॉ. शिवानी मंधानिया, डॉ. संदीप कुमार, डॉ. अनिल कुमार एवं डॉ. दीपक कुमार ने कपास बारे विस्तृत जानकारी दी।
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