महिला काव्य मंच इकाई हिसार द्वारा एक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी की अध्यक्षता मंच की अध्यक्ष सीमा शर्मा ने की और मंच संचालन भी किया। गोष्ठी की शुरुआत पूनम मनचंदा ने मधुर स्वरों में मां वीणापाणि की वंदना से की। कवयित्री अरुणा आहूजा ने ‘अक्षय हैं जो ऊर्जा के स्रोत, उस भाव से हो ओत-प्रोत। हो चाहे ऊर्जा, सौर, जल, जीवाश्म, ईंधन, नभ व थल। कुदरत निभाती हर जो फर्ज, कविता से मैं करती हूँ अर्ज।’ सुंदरता पर अभिमान था’ सुनाकर सब का दिल जीत लिया। कवयित्री डॉ. प्रज्ञा कौशिक ने अपनी रचना ‘वक्त ने कहा वक्त से अभी, वक्त ठहरता नहीं कभी, दर्ज हो जाता है याद बन, किताबों में तो कभी बातों में।’ सुना खूब तालियां पाई। कवयित्री सीमा शर्मा ने अपनी बेहतरीन कविता ‘जाने क्यों लोग सवाल करते हैं, नाहक ही बवाल करते हैं, मोड़ देते हैं ये सवाल कभी, कभी किसी की जिंदगी का रुख भी, इनको क्या ये तो सिर्फ सवाल करते हैं’ प्रस्तुत कर सराहना पायी।

मंच की महासचिव कवयित्री पूनम मनचंदा ने गजल ‘गीत कोई गुनगुनाओ तो जरा, छोड़ के गम मुस्कराओ तो जरा। रिश्तों के हैं खूबसूरत सब लिबास, तुम पहन खुद को सजाओ तो जरा।’ सस्वर सुनाकर महफिल में चार चाँद लगा दिए। मंच की उपाध्यक्ष कवयित्री डिम्पल सैनी ने ‘टूटी चप्पलें हाथ में पकडक़र कई ख्वाबों में पहुँची मैं समंदर की लहरों के बीच, उस पल नन्ही-नन्ही रंग-बिरंगी मछलियाँ मेरे छोटे-छोटे पैरों को गुदगुदाती’ सुना समां बांधा। कवयित्री स्नेह प्रेमचंद ने ‘खुशी तो है अंतर्मन का अहसास, खुशी नहीं मिलती बाहर से, खुशी है भीतर का अहसास, कोई तो कुटिया में भी खुश है, किसी को महल भी नहीं आते रास।’ प्रस्तुत कर मुक्त कंठ से प्रशंसा पायी। कवयित्री दिव्या कालरा ने ‘खुशियाँ वो नहीं जो त्योहारों से जुड़ी हो, खुशियाँ वो नहीं जो शादी या जन्म से जुड़ी हों, ऐसी खुशियाँ तो केवल दिखावे में सनी होती हैं, ऐसी खुशियाँ तो समाज में बुनी जोती है’ सुनाकर सबकी प्रशंसा पायी। कवयित्री करूणा मुंजाल ने ‘आसमां छूने की हसरत अपाहिज बनकर रह गई, तन से प्राण निकले नहीं जिंदगी भार बनकर रह गई।’ सुना सभी को भाव विह्वल कर दिया। कवयित्री अंशुला गर्ग ने ‘बूंद-बूंद से सागर भरता, बूंद-बूंद से अकाल भी पड़ता, बूंद-बूंद पानी है टपकता, बूंद-बूंद से ही जीवन है बचता।’ सुनाकर जल संरक्षण का अनुपम संदेश दिया। कवयित्री रिया नागपाल ने आज के संदर्भ में अपनी बेहतरीन रचना ‘गरीबों की बस्ती को ठुकरा शॉपिंग मॉल में पैसा उड़ाते हैं, क्या कभी सोचा है’ सुनाई। मंच की महासचिव पूनम मनचंदा ने सरस काव्य गंगा बहाने के लिए सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद किया।
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