कितनी ही बार हम स्वयं को या अपने परिवार के सदस्यों को छोटी-मोटी तकलीकों के बारे में शिकायत करते हुए देखते हैं। जीवन में हमें कई शारीरिक तकलीफों से जूझना पड़ता है। बचपन में हमें बाल्यावस्था संबंधी रोग हो जाते हैं। बड़ी उम्र में भी हमें अनेक बीमारियां झेलनी पड़ती हैं। जब कभी हम ज्यादा खा लेते हैं तो हमारे पेट में दर्द हो जाता है। हममें से कई लोग इन बातों को लेकर बहुत परेशान हो जाते हैं और शिकायत करते रहते हैं।
लेकिन अगर हम अपने आसपास नजर दौड़ाई तो देखेंगे कि कितने ही लोग गंभीर विकलांगता से पीडि़त हैं। हम देखेंगे कि किसी का कोई अंग नहीं है तो किसी को कोई जानलेवा बीमारी है। इनमें से कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इन चुनौतियों के बावजूद भी जिंदगी को भरपूर जीते हैं। वे अपने शरीर की तकलीफों का असर अपने मन और आत्मा पर नहीं पडऩे देते। वास्तव में हम आत्मा हैं। हमारा सच्चा स्वरूप आत्मिक है। शरीर केवल आत्मा के ऊपर चढ़ा हुआ आवरण है। आध्यात्म के द्वारा हम अपने सच्चे स्वरूप को पहचान सकते हैं। ध्यान अभ्यास और प्रार्थना की मदद से हम अपनी आत्मा को शरीर से अलग कर सकते हैं ताकि हम जान सकें।
हममें से कइयों के पास कार हैं कई बार कार खराब हो जाती है और हमें उसे मरम्मत के लिए भेजना पड़ता है। इससे हमें चाहे थोड़े दिनों के लिए असुविधा हो और हमें किराए पर भी कार लेनी पड़े या हमारे परिवार के किसी सदस्य और मित्र को हमें अपनी कार में ऐसा कभी महसूस नहीं होता कि हमारी जिंदगी खत्म हो गई हो।

हम जानते हैं कि सिर्फ एक भौतिक साधन है जिसका इस्तेमाल शरीर को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए करते हैं। ठीक इसी तरह हमारा शरीर भी हमारी आत्मा के लिए एक भौतिक साधन ही है कभी-कभी इसमें खराबी भी आ सकती है लेकिन इससे हमारी आत्मा पर असर नहीं पडऩा चाहिए। हमें अपने जीवन को भरपूर जीना चाहिए चाहे हमारा भौतिक साधन खराब हो या सही। जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर हमारे शरीर में बढ़ती आयु के लक्षण दिखने लगते हैं। हालांकि जीनोम प्रोजेक्ट द्वारा वैज्ञानिक उस जीन या गुणसूत्र को ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं जो आयु के बढऩे के लिए उत्तरदायी है और हो सकता है कि एक दिन ऐसा भी आए जब अनेक लोग 100 वर्षों से भी अधिक समय के लिए जिएं लेकिन फिर भी ऐसा एक दिन अवश्य आता है जब हमारा शरीर उतनी अच्छी तरह काम नहीं कर पाता जितना कि युवावस्था में करता था।
परंतु हमें इस बात से निराश नहीं होना चाहिए। वृद्धावस्था में कई लोगों का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता लेकिन यह बात उन्हें अपनी आत्मा की शांति प्राप्त करने से नहीं रोक सकती। इसी प्रकार हम भी शारीरिक तकलीफों के बावजूद मानव जीवन का भरपूर लाभ उठा सकते हैं। अंतर में प्रभु के संपर्क में आकर और उनके प्रेम का अमृत पीकर हम वो प्रेम दूसरों में भी बांट सकते हैं। ऐसा हममें से हर एक कर सकता है चाहे हमारी शारीरिक परिस्थितियां कैसी भी हों। किसी बीमारी के कारण घर पर हैं तो हम अपने परिवार के सदस्यों को प्रेम सकते हैं जो हमारी देखभाल कर रहे हैं।
वास्तविकता तो यही है कि जो बीमार है सिर्फ हमारा भौतिक आवरण है। हमारी आत्मा तो हमेशा पूर्ण रूप से स्वस्थ रहती है। हमें अपनी शारीरिक तकलीफों का असर अपने मन और आत्मा पर नहीं पडऩे देना चाहिए। एक आशावादी और सकारात्मक रवैया अपनाते हुए हम इन तकलीफों पर विजय पाकर अपने और दूसरों के जीवन में खुशियां ला सकते हैं।
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